आंखें ईश्वर की सबसे बड़ी नेमत हैं, इन्हें राख करके नहीं, ब्लकि किसी और की दुनिया को रौशन करके जाएं

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आंखें ईश्वर की सबसे बड़ी नेमत हैं, इन्हें राख करके नहीं, ब्लकि किसी और की दुनिया को रौशन करके जाएं -अनिल धामूॅ

फिरोजपुर 3 सितंबर ( बिट्टू जलालाबादी)

आज स्वास्थ्य विभाग जिला फाज़िलका द्वारा भारत विकास परिषद अबोहर के सहयोग से गोपी चंद आर्या महिला कॉलेज में आँखों के दान संबंधी एक जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्य कर्म में मंच का संचालन श्री भारत गोयल सेक्रेटरी भारत विकास परिषद अबोहर द्वारा किया गया। इस अवसर पर श्री प्रदीप जी गर्ग ने बताया के आंखें दान करने को एक सामाजिक सरोकार बना कर ही हम आगे बढ़ सकते हैं। श्री संदीप जी वाटस ने विद्यार्थियों को भारत विकास परिषद के समाज सेवा के लिए किए जाने वाले प्रकल्प और कार्यों के बारे में जानकारी दी। जिला मास मीडिया अफ़सर अनिल धामूॅ ने आंखें दान करने के बारे में विद्यार्थियों को जाग्रत करते हुए कहा कि बेटियों को जागृत करने का मतलब पूरे परिवार को जाग्रत करने जैसा है।

आज की इस आधुनिक दुनिया में भी ऐसे नेत्रहीन लोग हैं जो देख सकते हैं, बशर्ते कोई नेत्रदान करे। बस यहीं पर हमारी सारी आधुनिकता, पढ़ाई लिखाई, तरक्की सब एक दिखावा भर रह जाता है। जब हम किसी वहम भ्रम का शिकार हो कर आंखें दान नहीं ब्लकि राख करके चले जाते हैं। आज भी लगभग मांग और आपूर्ति की प्रतिशत 1:70 है। हम आसानी से अंदाजा लगा सकते हैं कि इस बारे में हम कितने जाग्रत हैं। यही हमारे ऊपर एक स्वाल है।

आंखें दान करने के बारे में एक भ्रम ये भी है कि पूरी आंख निकाल ली जाती है जब कि सिर्फ कॉरनिया ही उतार कर किसी दूसरे को लगाया जाता है। हमारी आँखों में जो गोल काला पारदर्शी हिस्सा होता है जिसके कारण ही हम इस दुनिया को देख सकते है उस झिल्ली को जो के प्याज के छिलके जैसी होती है उसे ही कारनिया कहा जाता है। यह झिल्ली कुपोषण, चोट लगने, अनुवांशिक या जन्मजात बीमारी, रसायनों के कारण या किसी भी दुर्घटना के कारण प्रभावित हो जाती है और देखने की क्ष्मता खो देती हैं या हम कह सकते हैं कि पर्दे पर सही रोशनी नहीं पड़ रही जिसके कारण हमे दिखाई नहीं देता। यही अंधे पन के कारण बन जाते हैं। इसे ही मेडिकल की भाषा में कोरनियल डीसट्रॉफी और डीजनरशन जिनमे से सिर्फ 45% ही प्रयोग हो पाती है जबकि लगभग डेढ़ लाख को हर साल जरूरत पड़ती है।

आंखें दान करने में सबसे बड़ी चुनौती हमारे समाज मे फैले वहम भ्रम हैं। आंखें दान करने के लिए उम्र, लिंग, ब्लड ग्रुप, धर्म,जात का कोई भी भेदभाव आड़े नहीं आता। ब्लकि जिनके आँखों के ऑपरेशन हुए हैं या चश्मा लगे हैं या लेंस का प्रयोग करते हैं, वो भी आंखें दान कर सकते हैं। एड्स पीलिया या ब्लड कैंसर और दिमागी बुखार जैसी बीमारियों से पीड़ित व्यक्ति आंखें दान नहीं कर सकता।

आंखें मौत के बाद 4 से 6 घण्टे के अंदर दान हो जानी चाहिए। एक आदमी दो लोगों के जीवन को रौशन कर सकता है। दान करने के लिए सबसे नजदीकी आई बैंक से संपर्क किया जाए। जैसे हमारे नजदीकी गंगानगर का अंध विद्यालय।टीम जब तक पहुंच ना जाए तब तक आंखों की सम्भाल करने के लिए जहां शव रखा है वहां पंखा न चलाएं तथा एक साफ गीला कपड़ा आँखों पर रख दिया जाए। आंखें दान करने की प्रक्रिया 10 से 15 मिनट में पूरी कर ली जाती है। जब भी किसी की मृत्यु के पश्चात भोग या अंतिम अरदास या गरुड़ पुराण पाठ हो तो वहां उपस्थित हुए लोगों को जाग्रत करने मे धार्मिक संस्थाएं बहुत बड़ा योगदान दे सकती हैं। आज हर व्यक्ति ऑनलाइन आवेदन भी कर सकता है। https://nhm.punjab.gov.in/Eye_Donation/जब तक हमें किसी के अँधेरों से भरी जिंदगी का एहसास नहीं होगा हम उनके प्रति अपनी जिम्मेदारी कैसे निभापाएंगे। अगर हर एक, सिर्फ एक को, जाग्रत करने का प्रण ले तो ये कोई मुश्किल काम नहीं। इस अवसर पर श्री कमल खुराना ने पम्फ्लेट जारी करवाये व श्री शाम लाल चराया व श्रीमती वंशिका धामूॅ विशेष तौर पर उपस्थित थीं। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रीय गान से किया गया।


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